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Jain Dharm- जैन धर्म से संबंधित सम्पूर्ण महत्वपूर्ण तथ्य जो हर बार परीक्षाओं में पूछे जाते है

प्रतियोगी परीक्षा हो, और जैन धर्म (Jain Dharm) से कोई प्रश्न या तथ्य न पूछा जाए ऐसा बमुश्किल ही होता है। ये ऐसा टॉपिक है जो आसान तो है ही साथ ही हम बचपन से इसे पढ़ते आ रहे है। अतः यदि हम एक नजर से इस टॉपिक को एक बार ध्यान से पढ़ ले तो आसानी से ये हमारे दिमाग में छप जाएगा और इससे संबंधित परीक्षाओं में कोई प्रश्न नहीं छूटेगा, तो इसी बात का फायदा उठाते हुए और बिना आलस्य किए, क्योंकि हमे पता है जब हम कोई चीज पहले ही पढ़ लेते है तो दोबारा उसे पढ़ने का मन नहीं करता है और आलस्य आ जाता है। आप अपने मन को समझा ले की आलस्य आपका महान शत्रु है और इसे अपने समीप न आने दे। तो चलिए बिना देर करते हुए जैन धर्म के सभी महत्वपूर्ण तथ्यों को पढ़ते है और साथ-साथ नोट बुक में नोट कर लेते है ताकि परीक्षा नजदीक आने पर दोहराने में आसानी हो :-


Jain Dharm- जैन धर्म से संबंधित सम्पूर्ण महत्वपूर्ण तथ्य

Jain Dharm

जैन धर्म का सामान्य परिचय

  • संस्थापक एवं प्रथम तीर्थंकर- ऋषभदेव या आदिनाथ
  • जैन धर्म में कुल तीर्थंकर : 24

जैन धर्म के प्रमुख तीर्थंकर और उनके प्रतीक चिन्ह

ऋषभदेव

01

सांड

अजितनाथ

02

हाथी

संभवनाथ

03

घोड़ा

संपार्श्वनाथ

07

स्वास्तिक

शांतिनाथ

16

हिरण

नामीनाथ

21

नील कमल

अरिष्टनेमि

22

शंख

पार्श्वनाथ

23

सर्प

महावीर

24

सिंह

पार्श्वनाथ

  • ये जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर थे।
  • काशी के इक्ष्वाकु वंशीय राजा अश्वसेन के पुत्र थे।
  • 30 वर्ष की अवस्था में इन्होंने संन्यास जीवन स्वीकारा।

इनके द्वारा दी गई प्रमुख शिक्षायें

   (i)     हिंसा न करना,

  (ii)     सदा सत्य बोलना,

 (iii)     चोरी न करना (अस्तेय)

 (iv)     सम्पत्ति न रखना (अपरिग्रह)

महावीर स्वामी

  • ये जैन धर्म के 24वें एवं अंतिम तीर्थंकर हुए।
  • जन्म:- 540 ई० पू०
  • स्थान :- कुण्डग्राम, वैशाली (बिहार)
  • बचपन का नाम- वर्द्धमान
  • पिता- सिद्धार्थ (ज्ञातृक कुल के सरदार)
  • माता- त्रिशला (लिच्छिवी राजा चेटक की बहन)
  • पत्नी- यशोदा
  • पुत्री- अनोज्जा प्रियदर्शनी
  • पुत्री का विवाह जामिल के साथ जो इनके - प्रथम अनुयायी बने
  • 30 वर्ष की उम्र में बड़े भाई नंदिवर्धन की अनुमति से संन्यास जीवन स्वीकारा।
  • 12 वर्षों की कठिन तपस्या करने के बाद जृम्भिक के समीप ऋजुपालिका नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे तपस्या करते हुए ज्ञान प्राप्त इन्हे ज्ञान प्राप्त हुआ
  • ज्ञान प्राप्ति के उपरांत ये जिन (विजेता), अर्हत (पूज्य) और निर्ग्रन्थ (बंधनहीन) कहलाये।
  • प्रथम उपदेश- राजगीर (बिहार)
  • उपदेश दिया - प्राकृत (अर्धमागधी) भाषा में l

प्रमुख अनुयायी

  • प्रथम अनुयायी- इनके दामाद (प्रियदर्शनी के पति) जामिल बने
  • प्रथम भिक्षुणीनरेश दधिवाहन की पुत्री चम्पा
  • अपने शिष्यों को 11 गणधरों में विभाजित किया।
  • महावीर स्वामी के निर्वाण उपरांत जैनधर्म का प्रथम उपदेशक- आर्य सुधर्मा
  • निर्वाण प्राप्त हुआ - 468 ई० पू० (72 वर्ष की आयु) बिहार राज्य के पावापुरी (राजगीर) में मल्लराजा सृस्तिपाल के राजप्रासाद में

जैन धर्म की प्रमुख विशेषताएं

  • जैनधर्म ने अपने आध्यात्मिक विचारों को सांख्य दर्शन से ग्रहण किया।
  • जैनधर्म में ईश्वर की मान्यता नहीं है।
  • जैनधर्म में आत्मा की मान्यता है।
  • महावीर पुनर्जन्म एवं कर्मवाद में विश्वास करते थे।

जैनधर्म के त्रिरत्न

   (i)     सम्यक् दर्शन

  (ii)     सम्यक् ज्ञान

 (iii)     सम्यक् आचरण

  • इसके लिए पाँच महाव्रतों का पालन अनिवार्य— अहिंसा, सत्यवचन, अस्तेय, अपरिग्रह एवं ब्रह्मचर्य ।
  • जैनधर्म के सप्तभंगी ज्ञान के अन्य नाम स्यादवाद और अनेकांतवाद हैं।

जैन धर्म का विभाजन

  • लगभग 300 ई० पू० में मगध में 12 वर्षों का भीषण अकाल पड़ा
  • भद्रबाहु अपने शिष्यों के साथ कर्नाटक चले गए शिष्य दिगंबर (नग्न रहने वाले) कहलाए
  • स्थूलभद्र- मगध में ही रुक गए इनके शिष्य श्वेतांबर (श्वेत वस्त्र धरण करने वाले) कहलाए

इस प्रकार जैन धर्म दो संप्रदायों में बँट गया

  • जैनधर्म मानने वाले कुछ राजा थे— उदायिन, वंदराजा, चन्द्रगुप्त मौर्य, कलिंग नरेश खारवेल, राष्ट्रकुट राजा अमोघवर्ष, चंदेल शासक ।
  • मैसूर के गंग वंश के मंत्री, चामुण्ड के प्रोत्साहन से कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में 10वीं शताब्दी के मध्य भाग में विशाल बाहुबलि की मूर्ति (गोमतेश्वर की मूर्ति) का निर्माण किया गया।
  • मौर्योत्तर युग में मथुरा जैन धर्म का प्रसिद्ध केन्द्र था
  • खजुराहो में जैन मंदिरों का निर्माण चंदेल शासकों द्वारा किया गया।
  • जैन तीर्थंकरों की जीवनी भद्रबाहु द्वारा रचित कल्पसूत्र में है।
  • मल्लराजा सृस्तिपाल के राजप्रासाद में महावीर स्वामी को निर्वाण प्राप्त हुआ था।

जैन संगीतियाँ

संगीति

वर्ष

स्थल

अध्यक्ष

प्रथम

300 0 पू0

पाटलिपुत्र

स्थूलभद्र

द्वितीय

छठी शताब्दी

वल्लभी (गुजरात)

क्षमाश्रवण

 

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